दर्द
मेरे दिल से निकली धड़कन भी अब तोबेचैनी पैदा करती है
ये गर्म आंसुओं से जल्ती ऑंखें
कुछ ऐसा ढूँढा करती हैं
जो इस दिल से निकली आग को
थोड़ा पानी पिला दे
मेरी हर ख्वाहिश भी अब तो
मुझसे साजिश करती है
मैं ढूंढता हूँ अलग अलग रंगों में ख़ुशी
मगर टूटे सपनो की यादें
कतरा कतरा मुझमे
गम की कालिख भर्ती है
अजब ही मज़ा आता है
दर्द ही दवा बन जाता है
जब नीली नसों से बहकर
जेहन तक ये आता है
दुनिया का बेहतरीन
नशा बन जाता है
ये दर्द जब जब होता है
तो बस दर्द ही दर्द रहता है
वो बेचैन बंजारा
सबकुछ भुला देता है
दिल की बेचैनी छानकर
ये हसीं दर्द
थोड़ी राहत बचा लेता है
इस हलके हलके दर्द
की खुराक पर ही तो
ये बंजारा जिन्दा रहता है