Friday, September 29, 2017

Nothing of me is mine.

                                

                           I Owe You


आओ और न सोचो, सोच के क्या पाओगे 
जितना भी समझे हो, उतना पछताए हो 
                                                        जावेद अख़्तर     

आओ और न सोचो, सोच कर क्या पाओगे 
जितना भी समझे हो, उतना पछताए हो 
अब इतनी समझ लेकर तुम कहाँ जाओगे 
जितना भी समझोगे, उतना ही उलझोगे 

गनीमत है, तुम खुद को सुलझा पाओगे 
आदम के अख्लाकी कारागारों में 
कायदों में किरदारों में 
खुद को  ढल्ता पाओगे 

आओ और न सोचो 
ज्यादा गर तुम सोचोगे    
तो उधार की सोच से 
वक़्त की नींव पर बनी 
ये समझ की इमारत ढह जाएगी 

आज़ादी तो ले जाओगे 
मगर वीरानों में खो जाओगे 
वो समझ वापस न बुन पाओगे 
वक़्त से मत खाओगे 
यार बड़े पछताओगे 

समझ में सब आएगा 
समझ न कभी कुछ पाओगे 
चोट तो तुम खाओगे 
महसूस न कभी कर पाओगे 
सही और गलत ही भूल जाओगे