एक शाम
बेरोज़गारी के उन तन्हा लम्हों को
सब्ज़ करता है तेरा तस्सवुरऱ
नूर-ए-सादगी तेरी आँखों का
ही तो है मेरा हौसला-ए-कलम
लबों से लफ्ज़ जो निकले
लब फैले कभी सिकुड़े
हसी जो चेहरे पर बिखरे
दीदार-ए-मंजर तो महफ़िल हो जाए
सीने में बैठा वो शायर बग़ावत करदे
ये खूबसूरत ख्याल हमें काफिर करदे
इससे पहले
खोल लेते हैं थम से अपनी आँखें
No comments:
Post a Comment