Saturday, December 22, 2018


एक शाम 


बेरोज़गारी के उन तन्हा लम्हों को 
सब्ज़ करता है तेरा तस्सवुरऱ 

नूर-ए-सादगी तेरी आँखों का   
ही तो है मेरा हौसला-ए-कलम 

लबों से लफ्ज़ जो निकले 
लब फैले कभी सिकुड़े 
हसी जो चेहरे पर बिखरे 
दीदार-ए-मंजर तो महफ़िल हो जाए 

सीने में बैठा वो शायर बग़ावत करदे 
ये खूबसूरत ख्याल हमें काफिर करदे 
इससे पहले 

खोल लेते हैं थम से अपनी आँखें 

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