Euphoria
क्या है ये
लगता है रगों में खून बनकर
जूनून दौड़ रहा है
कतरा कतरा मुझमे से मेरा
डर निचोड़ रहा है
ये आज़ादी तो थोड़ी पागल है
थोड़ी घातक है
इसे जैसे मालूम ही नहीं
की ज़िन्दगी की भी
कोई कीमत है
लगता है जेहन ने
ज़ंजीरें तोड़ दी है
सारी शर्म ओ लिहाज़
छोड़ दी है
खुदी के एहसासों की गर्मी से
तप्ता है बदन
फटती हैं नसें
और मचलता है मन
पैर रुकते नहीं ज़मी पैर
रास्तों की परवाह न कोई
और न मंज़िल से कोई मतलब है
मुश्किल है पता करना
आज़ादी पागल होती है
के कोई पागल आज़ाद हो गया है
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