एहसास
देखकर तेरी मुस्कान निराली
भर जाती है मेरे मन की प्याली
मुझे मेरा ख़्याल ही नही रहता
बस तुझे सुनता हूँ मैं नहीं कुछ कहता
कैसे कहूँ, जेहन में कोई शब्द ही नहीं रहता
तेरी आवाज़ की ज़ंजीरें जकड़ लेती हैं मेरी धड़कनों को
रक्त थम सा जाता है मेरी नसों में
तुझे क्या बताऊँ कैसे मर मर के जीता हूँ मैं उन पलों में
दिल ढूंढता है आज़ादी इस हसीं दर्द से
तेरे इश्क़ के इस बेरहम मर्ज़ से
क्या तेरी आवाज़ का ये जादू है
या तेरे नूर का सुरूर है मुझे
नहीं, ये कुछ और ही है जो मुझे तुझसे जोड़ता है
और फिर मेरे एहसासों का रुख़ तेरी तरफ मोड़ता है
शुक्र है मेरे एहसासों का एहसास नहीं है तुझे
वरना इतना दर्द तू कहाँ सह पाता
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