leisure
फिर इक शाम गुज़रती है,इक सूरज ढल्ता है
फिर ज़िन्दगी का एक दिन मिट्टी में जा मिलता है
उस अँधेरी रात में ख्यालों के बादल छाते हैं
कल फिर जीने की वजह बताते हैं,कमज़ोर सी एक वजह
क्या है वो वजह ,क्यों चलती है सांसें बेवजह
क्यों नहीं रूकती ,क्या तुम जानते हो
चलो छोड़ो मुद्दे की बात पर आते हैं
रात गुज़र जाती है ,बादल बरसकर मिट जाते हैं
और वो वजह भी जो उनकी पनाह में पल रही थी
फिर दिन का उजाला छाता है ,और वो राही सब कुछ भूल जाता है
पिछली बारिश को भूलकर फिर सूखे से जा घिरता है
यूँ मारा मारा सा फिरता है
मानो सूरज की किरणे उसकी यादाश्त मिटा देती हैं
फिर वाही सवाल उठता है क्यों चलती हैं साँसें ?
No comments:
Post a Comment